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गोदान भाग 4

  मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है! और जिये भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा। वह हँसती है, इसलिए कि उसे इसके भी दाम मिलते हैं। उसका चहकना और चमकना, इसलिए नहीं है कि वह चहकने को ही जीवन समझती है, या उसने निजत्व को अपनी आँखों में इतना बढ़ा लिया है कि जो कुछ करे, अपने ही लिए करे। नहीं, वह क्योंकि चहकती है और विनोद करती है कि इससे उसके कर्तव्य का भार कुछ हलका हो जाता है। उसके बाप उन विचित्र जीवों में थे, जो केवल ज़बान की मदद से लाखों के वारे-न्यारे करते थे। बड़े-बड़े ज़मींदारों और रईसों की जायदादें बिकवाना, उन्हें क़रज़ दिलाना या उनके मुआमलों को अफ़सरों से मिलकर तय करा देना, यही उनका व्यवसाय था। दूसरे शब्दों में, दलाल थे। इस वर्ग के लोग बड़े प्रतिभावान होते हैं। जिस काम से कुछ मिलने की आशा हो, वह उठा लेंगे, किसी न किसी तरह उसे निभा भी देंगे। किसी राजा की शादी किसी राजकुमारी से ठीक करवा दी और दस-बीस हज़ार उसी में मार लिये। यही दलाल जब छोटे-छोटे सौदे करते हैं, तो टाउट कहे जाते हैं, और हम उनसे घृणा करते हैं। बड़े-बड़े...