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गोदान भाग 6

  सोना सत्रहवें साल में थी और इस साल उसका विवाह करना आवश्यक था। होरी तो दो साल से इसी फ़िक्र में था, पर हाथ ख़ाली होने से कोई क़ाबू न चलता था। मगर इस साल जैसे भी हो, उसका विवाह कर देना ही चाहिए, चाहे क़रज़ लेना पड़े, चाहे खेत गिरों रखने पड़ें। और अकेले होरी की बात चलती तो दो साल पहले ही विवाह हो गया होता। वह किफ़ायत से काम करना चाहता था। पर धनिया कहती थी, कितना ही हाथ बाँधकर ख़र्च करो; दो-ढाई सौ लग ही जायँगे। झुनिया के आ जाने से बिरादरी में इन लोगों का स्थान कुछ हेठा हो गया था और बिना सौ दो-सौ दिये कोई कुलीन वर न मिल सकता था। पिछले साल चैती में कुछ न मिला। था तो पण्डित दातादीन से आधा साझा; मगर पण्डित जी ने बीज और मजूरी का कुछ ऐसा ब्योरा बताया कि होरी के हाथ एक चौथाई से ज़्यादा अनाज न लगा। और लगान देना पड़ गया पूरा। ऊख और सन की फ़सल नष्ट हो गयी। सन तो वर्षा अधिक होने और ऊख दीमक लग जाने के कारण। हाँ, इस साल की चैती अच्छी थी और ऊख भी ख़ूब लगी हुई थी। विवाह के लिए गल्ला तो मौजूद था; दो सौ रुपए भी हाथ आ जायँ, तो कन्या-अण से उसका उद्धार हो जाय। अगर गोबर सौ ,रुपए की मदद कर दे, तो बाक़ी सौ...