गोदान मुंशी प्रेम चंद
गोदान मुंशी प्रेम चंद होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा -- गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ। ज़रा मेरी लाठी दे दे। धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली -- अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है। होरी ने अपने झुरिर्यों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा -- तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिन्ता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेंट न होगी। असनान-पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा। 'इसी से तो कहती हूँ, कुछ जलपान कर लो। और आज न जाओगे तो कौन हरज़ होगा। अभी तो परसों गये थे।' 'तू जो बात नहीं समझती, उसमें टाँग क्यों अड़ाती है भाई! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख। यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है। नहीं कहीं पता न लगता कि किधर गये। गाँव में इतने आदमी तो हैं, किस पर बेदख़ली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं आयी। जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है। ' Godan Munshi Premchand गोदान मुंशी प्रेम चंद 1. होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी ...